पुरानी कंपनी के एक मित्र के लिखे हुए कुछ शब्द मिल गए
ऑनलाइन, आनंद आ गया उनके
वेग-उद्वेग को पढ़कर,
सोचा आप लोगों को क्यों महरूम रखा जाए! सो मित्र के अंग्रेजी में लिखे गए शब्दों
को हिंदी में प्रस्तुत कर रहा हूं।
बात कुछ दो-तीन वर्ष पहले की है, हम दो अलग डिपार्टमेंट में काम किया करते थे। वो
लोकलाइजेशन इंजीनियरिंग में थे और मैं प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में. अक्सर उनके
टेक्निकल स्किल्स की जरूरत पड़ जाती थी, उसी दौरान उनसे संपर्क मित्रता के स्तर तक पहुंच गया। मुझे
लगता था कि उनका रिटायरमेंट इसी कंपनी से होना है. खैर, तकरीबन तीन वर्ष
पहले मैंने कंपनी बदल ली और वो वहीं टिके रहे, लेकिन ये क्या! कल उनके शब्द ऑनलाइन मिले और पता चला कि
एक साल पहले उन्होंने भी कंपनी छोड़ दी और अपनी राह बनाने निकल पड़े। उनके शब्द
कुछ इस प्रकार थे –
“....................................................
बहुत हो गया…
बहुत हो गए कार्पोरेट रूल्स। ये इस तरह करो, वो उस तरह करो;
चूंकि ऐसा ही कहीं भी करना होता है। काफी हो गये कंपनी के हाइरार्की और संस्कृति
के बंधन। काफी हो गये तथाकथित ‘सर्वोत्तम परिपाटी (Best Practices),’ मूल्यांकन और व्यवस्था
क्रम (appraisals and processes) लगता है जैसे कि दूसरे तरीके से दास बनाया
जा रहा हूं।
हे भगवान, मैं क्या कर रहा था? और क्यों मुझे
कुछ पहले नहीं महसूस हुआ कि ये कार्य-संस्कृति मेरी प्रवीणता, निपुणता, दक्षता को अंदर
ही अंदर प्रज्जवलित करने के बजाय निरूत्साहित
करनेवाली है।
सो मैंने दूसरी जगह ध्यान लगाया। बस समझ लीजिए सोचा कि मैं
खुद को यहां से निकाल कर खुले बाजार में अपने आप को परखना चाहता था। मैं चीजों को
दूसरी तरह से करना चाहता था। सामान्य शब्दों में मैं आजाद तरीके से काम कर अपनी
क्षमताओं को परखना चाहता था और देखना चाहता था कि मेरी क्षमताएं मुझे कहां तक ले
जा सकती हैं।
आजादी, जिसके साथ मैं कुछ काम कर सकूं। बदलाव
के लिए मेरे खुद के नियम बनाने की आजादी…
यदि मैं सच में अच्छा काम करता हूं तो अपने आकाओं की सेवा-सुश्रुषा करने और
जेबें भरने एवं महीने के अंत का इंतजार करने की बजाए मैं खुद के लिए क्यों नहीं
करता।
....................................................”
और फिर उन्होंने ऑफिस छोड़ दिया। फिलहाल, इस दीवाली पर उनका
बधाईवाला मैसेज प्राप्त हुआ है, पर विस्तार में उनसे बातचीत बाकी है। अब देखना है कि वे कितनी
ऊंचाईयां छू पाए हैं। खैर एक बात तो तय है एक साल से जिस जज्बे के साथ कार्यरत
हैं वो कुछ कम नहीं है – मित्र के उस जज्बे को सलाम…
(शेष कथा-व्यथा अगले ब्लॉग में…)